सन 1979 में बसंत पंचमी के दिन जब निरोगधाम पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया गया, तब सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय स्तर की कोई भी स्वास्थ्य पत्रिका प्रकाशित नहीं होती थी। आम लोगों में स्वास्थ्य विषय को लेकर विशेष रुचि नहीं थी। देशवासियों में शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक स्वास्थ्य और उचित आहार के प्रति चेतना उत्पन्न करने के उद्देश्य से निरोगधाम पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया गया।
यह एक साहसिक कदम था, जो हमने ईश्वर के प्रति भरोसे और स्वयं के बलबूते पर उठाया था। इसलिये शुरू के 5-6 वर्ष अत्यंत कठिन संघर्ष के रहे पर ईश्वर की कृपा से हमारा परिश्रम सफल हुआ और आज यह पत्रिका सिर्फ देश के कोने-कोने तक ही नहीं बल्कि विदेशो में भी पहुँच रही है | यूं तो निरोगधाम की सफलता और लोकप्रियता से प्रभावित हो कर, गत 2-3वर्षों से कई प्रकाशन भी स्वास्थ्य पत्रिकाएँ प्रकाशित करने लगे हैं पर इससे निरोगधाम की प्रसार संख्या और लोकप्रियता में कोई फर्क नहीं पड़ा है | इसका मुख्य कारण इस पत्रिका की सेवाभावी नीति, श्रेष्ठ एवं लाभप्रद पाठ्य सामग्री, पाठकों के प्रति निष्ठा और ग्लैमर से भरे इस जमाने में रंगीन तड़क-भड़क से रहित सादगी पूर्ण ढंग से प्रमाणित जानकारी की प्रस्तुति है।
यह एक ऐसी स्वास्थ्य पत्रिका है, जो एक स्वास्थ्य रक्षक और मार्गदर्शक की तरह विभिन्न पहलुओं से कई तरह की स्वास्थ्य-सम्बन्धी जानकारियां देकर स्वास्थ्य की रक्षा करने, रोगों से बचने और रोग हो जाए तो उससे निवृत्त होने के उपाय बताती है| यह एक ऐसी हितैषी मित्र की तरह है, जो सदैव हित की ही बात करती है, आपके हित के उपाय बताती है और आपके आनंद-मंगल की कामना करती है| यह बात याद रखने योग्य है कि स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ शरीर का बलवान होना ही काफी नहीं होता बल्कि मन और आत्मा का भी मल-विक्षेप तथा आवरण से रहित होकर पवित्र और निर्विकार होना जरुरी होता है| अतः यह पत्रिका सिर्फ शरीर के विषय में ही नहीं, मन और आत्मा के विषय में भी चर्चा करती है।क्योंकि मन से स्वस्थ, निर्विकार और पवित्र रहने पर ही हमारा शरीर स्वस्थ और निरोगी रह सकता है| यही वजह है कि निरोगधाम में सिर्फ जड़ी बूटियों, नुस्खों और कायचिकित्सा का विवरण ही नहीं बल्कि मन, आत्मा, इंद्रियों, बुद्धि, विवेक, नीति आदि से सम्बंधित गूढ़ विषयों पर भी सरल भाषा और रोचक शैली में काफी सामग्री प्रस्तुत की जाती है|
पत्रिका के प्रायः हर पृष्ठ पर कोष्ठक (बॉक्स) में जो विचार सूत्र दिए जाते हैं वे बहुत सारगर्भित, संक्षिप्त और सरल भाषा में गहरी बात प्रस्तुत करने वाले होते हैं। उन्हें पढ़कर आप अच्छे विचार करने की प्रेरणा और सामग्री प्राप्त कर सकते हैं, ताकि आपकी विचारशीलता, बौद्धिकता और जानकारी बढ़ सके| इन विचार सूत्रों को आप बार-बार पढ़ें, इन पर मनन करें तो आपकी चिंतनशक्ति बढ़ेगी, बुद्धि तीव्र होगी और आपके सामान्य ज्ञान का भी विकास होगा, जिससे आप दैनिक जीवन में आहार-विहार, आचार-विचार, कार्य एवं कार्यक्रमों के बारे में उचित निर्णय ले सकेंगे, जो कि सफल, सुखी और स्वस्थ्य जीवन जीने में सहायक सिद्ध होगा | इलाज करने की अपेक्षा बीमारी से बचाव हमेशा अच्छा होता है क्योंकि आजकल इलाज कराना बहुत महंगा हो गया है |
यह पत्रिका, आपके और आपके परिवार के सभी सदस्यों के मानसिक, शारीरिक और आत्मिक स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं के लिए सद्भावना और निष्ठा के साथ उचित विवरण प्रस्तुत करने की भरपूर कोशिश करती रहती है| इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कई स्थायी स्तंभों के माध्यम से कई प्रकार की हितकारी व उपयोगी बातें सरल, सुबोध और रोचक शैली में यह पत्रिका आपसे कहती है | आप इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें, इसका मनन करें और उपयोगी ज्ञान को यथाशक्ति ग्रहण कर अमल में लें।सहायक जानकारी आपकी सेवा में प्रस्तुत करना इस पत्रिका की नीति है और इसको प्रकाशित करने का उद्देश्य भी है। जैसे कि शास्त्र का कहना है –
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
अर्थात सब सुखी हों और सब निरोग रहें
निरोगधाम पढ़िये ! निरोग रहिए !!
निरोगधाम पत्रिका की शुरुआत फरवरी 1979 को वसंत पंचमी के दिन से की थी। शुरुआत मे प्रथम संस्करण की 500 प्रतिया छापी गई। जो की बिना किसी प्रसार प्रचार से माउथ पब्लिसिटी दवारा अक्टूबर 1993 तक 2,40,000 प्रतियो तक पहुंच गई थी।
१७ वर्ष की आयु से वर्ष १९७९ फरवरी पत्रिका की शुरुआत से ही पत्रिका से जुड़े है । वर्ष 2010 तक प्रबंध सम्पादक का कार्य किया । २२ जुलाई २०१० को श्री प्रेमदत्त पांडये के निधन के बाद से पत्रिका के प्रकाशक हो गए । जनवरी २०१६ से प्रधान सम्पादक के पद का भी निर्वहन करना प्रारम्भ कर दिया । वर्तमान समय मे पत्रिका के प्रकाशक एवं संपादक का कार्य कर रहे है।