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दांतों को स्वच्छ, सुन्दर और मज़बूत बना रहना न सिर्फ चेहरे की सुन्दरता के लिए ही अनिवार्य है बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भी बहुत ज़रूरी होता है। हम जो कुछ भी आहार लेते हैं उसे दांतों से ही चबाते हैं और आहार का प्रवेश द्वार मुख ही है। अतः दांत व मसूढ़ों को स्वच्छ तथा मज़बूत रहना ही चाहिए ताकि जो कुछ खाया जाए उसे भली भांति चबाया जा सके।
दांतों को स्वच्छ, सुन्दर और मज़बूत बना रहना न सिर्फ चेहरे की सुन्दरता के लिए ही अनिवार्य है बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भी बहुत ज़रूरी होता है। हम जो कुछ भी आहार लेते हैं उसे दांतों से ही चबाते हैं और आहार का प्रवेश द्वार मुख ही है। अतः दांत व मसूढ़ों को स्वच्छ तथा मज़बूत रहना ही चाहिए ताकि जो कुछ खाया जाए उसे भली भांति चबाया जा सके। दांतों का काम आंतों से नहीं लिया जाना चाहिए। यदि दांत मसूढ़े निरोग और मज़बूत नहीं रहेंगे तो मुंह से दुर्गन्ध आएगी, मसूढ़े पकने व सड़ने लगेंगे, मसूढ़ों से खून आने लगेगा। इसे पायरिया रोग कहते हैं। यहां दांत व मसूढ़ों को मज़बूत, स्वच्छ और निरोग रखने वाले कुछ उपाय प्रस्तुत हैं।
सरसों का तैल २ चम्मच और आधा चम्मच पिसा हुआ नमक, दोनों मिला कर मुंह में रख लें। थोड़ी देर में मुंह में लालारस (सलाइवा) इकट्ठा होने से गाल फूलने लगेंगे। ज्यादा फूलने लगें तब थोड़ा सा थूक कर मुंह हलका कर लें और मुंह बन्द रखें। थोड़ी थोड़ी देर से थोड़ा थोड़ा थूकते रहें और लगभग आधा घण्टे बाद सब थूक दें। इस आधा घण्टे तक अपना काम काज करते रहें पर बोलें नहीं। आधा घण्टे बाद सब थूक कर, पानी से कुल्ले न करते हुए, लालारस ही बार-बार थूकते रहें। १५-२० मिनिट में मुंह खुद ब खुद साफ़ हो जाएगा। यह प्रयोग लाभ न होने तक प्रतिदिन एक बार नियमित रूप से करें फिर दो सप्ताह तक एक दिन छोड़कर करने लगें।
दो सप्ताह बाद, सप्ताह में दो बार करने लगें । छः माह तक यह प्रयोग करने पर दांत-मसूढे स्वस्थ, मज़बूत और निरोग हो जाते हैं तथा मुंह से दुर्गन्ध आना बन्द हो जाता है। बहुत ही गुणकारी प्रयोग है।
दांत स्वच्छ और बेदाग़ रखने के लिए दिन में एक बार ‘मुक्ताचमक' और एक बार ‘बिटको काला दंत मंजन' का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। मसूढ़ों को स्वस्थ तथा मज़बूत रखने के लिए गुरूकुल कांगड़ी की बनी 'पायोकिल' दन्त औषधि का प्रयोग भोजन करने के बाद अवश्य करना चाहिए। ‘पायोकिल' दंत मंजन नहीं है बल्कि मसूढ़ों को स्वस्थ तथा मज़बूत रखने वाली एक दवा है। इसके पाउडर को, अंगुली से मसूढ़ों पर भीतर बाहर ऊपर नीचे लगा देना चाहिए और १५-२० मिनिट तक लालारस (लार) थूकते रहने के बाद पानी से कुल्ले कर लेना चाहिए।
दांत में दर्द हो तो ज़रा सा कपूर दर्द करने वाले दांत या दाढ़ के नीचे रख कर दबा लें। दाढ़ में सूराख हो तो उसमें भर दें। दर्द बन्द हो जाएगा। एक उपाय यह है कि नौसादर और सोंठ समान मात्रा में लेकर पीस लें और इससे मंजन करें। दाढ़ में खोखली जगह हो तो वहां यह चूर्ण भर दें, आराम हो जाएगा।
दांत में दर्द हो तो कच्चे पपीते का दूध, ज़रा सी हींग और कपूर मिला कर रुई के फाहे मे रख कर दुखते दांत-दाढ़ की नीचे रख कर दबा लें। थोड़ी देर में दर्द बन्द हो जाएगा।
दांतों को स्वच्छ, मज़बूत और निरोग रखने के लिए मसूढ़ों का स्वस्थ और मज़बूत होना ज़रूरी होता है इसलिए घरेलू दन्त मंजन के दो इलाज प्रस्तुत कर रहे हैं।
पहला इलाज हमें ठाकुर बनवीरसिंहजी ‘चातक' आयुर्वेद रत्न, ग्राम लाड़कुई (सीहोर) म.प्र. से प्राप्त हुआ था जिसे निरोगधाम पत्रिका के जुलाई ८९ अंक में प्रकाशित किया जा चुका है। वही इलाज यहां प्रस्तुत है-
घटक द्रव्य - कपूर ६ ग्राम, नीला थोथा भुना हुआ ६ ग्राम, फिटकरी का फूला २० ग्राम, मौलसरी की अन्तरछाल ३० ग्राम, भुना हुआ धनिया, काली मिर्च, सेन्धानमक, सोंठ, दालचीनी असली, सफ़ेद कत्था, सुहागा भुना- सातों द्रव्य २५-२५ ग्राम, संगजराहत जयपुरी ३० ग्राम, रूमी मस्तगी ३० ग्राम, पीपरमेण्ट क्रिस्टल १५ ग्राम, अजवायन का सत्त (थायमोल) १५ ग्राम ।
अकरकरा, समुद्रफेन, त्रिफला, लेंडीपीपल बड़ी- चारों द्रव्य २५-२५ ग्राम। आम, बबूल और नीम के साफ़ किये हुए और छाया में सुखाये हुए पत्ते ५०-५० ग्राम । दम्मुल अखबेन (एक प्रकार का गोंद), लौंग, बड़ी इलायची के बीज, माजूफल, सीप और मूंगा- सब ३०-३० ग्राम, नागरमोथा, वायविडंग ४०-४० ग्राम । लौंग, दालचीनी, यूकेलिप्टस, सौंफ और इरिमेदादि- इन पांचों का तैल २०-२० मि.लि.।
विधि - पांचों तैल एक बड़ी शीशी में डाल कर मिला लें और कपूर, थायमोल तथा पीपरमेण्ट डाल कर कार्क लगा कर शीशी को खूब हिला कर रख दें। यह मिश्रण नं. १ हुआ। शेष सभी दवाओं को कूट पीस कर मैदा वाली बारीक छन्नी से छान लें। जो मोटा अंश बचे उसे फिर से कूट पीस कर छान लें। ऐसा तब तक करते रहें जब तक मोटा अंश खत्म न हो जाए। अब सभी द्रव्यों को एक बड़े खरल में डाल कर घुटाई शुरू करें । घोंटते जाएं और मिश्रण नं. १ इसमें मिलाते जाएं। जब मिश्रण नं. १ पूरा मिल जाए तब खरल करना बन्द करके चौड़े मुंह की कांच की बरनी (जार) या बड़ी बॉटल में भर कर ठीक से ढक्कन लगा दें। बस, दन्त मंजन तैयार है।
सुबह और रात को सोने से पहले इस मंजन को मसूढ़ों पर लगा दें। १५-२० मिनिट तक लार थूकते रहें। इसके बाद कुल्ले करके मुँह साफ़ कर लें।
लाभ- यह मंजन दांत और मसूढ़ों को स्वस्थ, मज़बूत तथा निरोग रखता है, पायरिया रोग ठीक करता है और दांतों की सभी व्याधियां नष्ट करता है।
जो ऊपर वर्णित दन्तमंजन न बना सकें वे निम्नलिखित मंजन बना कर सेवन करें। इस मंजन को हम स्वामी जगदीश्वरानन्दजी सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक- घरेलू औषधियां- से साभार उदधृत कर रहे हैं-
घटक द्रव्य - दालचीनी, कालीमिर्च, धनिया भुना हुआ, नीलाथोथा भुना हुआ, कपूर कचरी, सेन्धानमक, मस्तगी और चोपचीनी- प्रत्येक १०-१० ग्राम । पपड़िया कत्था २० ग्राम, माजूफल ५ नग।
निर्माण विधि - सब द्रव्यों को कूट पीस कर तीन बार छन्नी से छान लें और शीशी में भर लें।
लाभ - इस मंजन को प्रयोग करने वाले के दांत मसूढ़े किसी भी व्याधि से ग्रस्त नहीं हो सकते और बुढ़ापे तक पहुंचने पर भी स्वस्थ व मज़बूत बने रह सकते हैं। स्वामी जगदीश्वरानन्दजी सरस्वती ने तो यह भी लिखा है कि इस दन्त मंजन को नियमित रूप से सुबह शाम प्रयोग करने वाले के बाल जीवन भर सफ़ेद नहीं होंगे। हमने ऐसा कोई अनुभव अभी तक किया नहीं है इसलिए हम इस कथन का समर्थन तो नहीं कर सकते, फिर भी पाठकों से यह निवेदन ज़रूर करेंगे कि नियमित रूप से इस दन्तमंजन का प्रयोग अवश्य करें।
हिचकी - वात के प्रकोप से कभी-कभी ऐसी हिचकी चलती है जो बन्द ही नहीं होती। प्रायः साधारण हिचकी पानी पीने, प्राणायाम करने, किसी चिन्ताजनक बात पर विचार करने और घी-चावल खाने से बन्द हो जाती है पर कभी-कभी कोई भी उपाय हिचकी बन्द करने में कामयाब नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में निम्नलिखित उपाय करना चाहिए।
सामग्री - मोर पंख का चन्द्राकार भाग, पीपल का चूर्ण और शहद ।
विधि - मोरपंख का चन्द्राकार भाग कैंची से काट कर जला लें और भस्म कर लें। पीपल (पीपर) को खूब बारीक पीस लें। दोनों को समान मात्रा में मिला लें।
मात्रा और सेवन विधि - इस मिश्रण को एक चम्मच (लगभग ५ ग्राम) मात्रा में लेकर थोड़े से शहद में मिला कर चाट लें।
लाभ - इस प्रयोग से, एक या दो बार सेवन करने पर ही, हिचकी चलना बन्द हो जाता है। परीक्षित है। जब तक हिचकी बन्द न हो तब तक भोजन नहीं करना चाहिए। भूख का शमन करने के लिए दूध में ८-१० मुनक्का (बीज हटा कर) और २ ग्राम सोंठ चूर्ण डाल कर पीना चाहिए।
घर पर बनाये जा सकने वाले घरेलू नुस्खों की जानकारी प्रस्तुत करने के बाद अब विभिन्न व्याधियों को दूर करने वाले कुछ श्रेष्ठ गुणकारी ऐसे शास्त्रीय योगों का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं जो घर पर भी बनाये जा सकते हैं और औषधि निर्माता कम्पनियों द्वारा बनाये हुए दवाइयों की दुकानों पर भी मिलते हैं। ये सभी योग परीक्षित हैं और निरापद रूप से प्रयोग किये जा सकते हैं। इनको सेवन कर रोग से छुटकारा प्राप्त करें।
स्मरण शक्ति - छात्र-छात्रओं एवं दिमागी काम करने वाले स्त्री पुरुषों को दिमाग़ी थकावट, कमजोर याददाश्त और मानसिक उच्चाटन से बचने के लिए निम्नलिखित घरेलू चिकित्सा करना चाहिए-
वटी की १-१ गोली सुबह-शाम पानी के साथ और सीरप शंखपुष्पी १-१ चम्मच आधा कप पानी में घोल कर दोनों भोजन के साथ लगभग २ माह तक सेवन करना चाहिए। छात्र-छात्राओं को पढ़ते लिखते समय और दिमाग़ी काम करने वाले नौकर-पेशा स्त्री-पुरुषों को एकाग्रचित होकर कार्य करना चाहिए। एकाग्रता से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है।
भूख न लगना - चिंता एवं मानसिक तनाव का सबसे पहला और तीव्र प्रभाव पाचन शक्ति एवं निद्रा पर पड़ता है। मन व्यग्र या खिन्न हो तो भूख मर जाती है। भोजन के समय मन को निश्चिन्त और प्रसन्न रखना चाहिए तथा लाभ न होने तक यह प्रयोग करना चाहिए-
वृहतकाव्याद रस १ गोली और अग्नि तुण्डी वटी १ गोली सुबह, शाम भोजन करने से एक घण्टे पहले पानी के साथ निगल लेना चाहिए। कुछ दिन तक लगातार यह प्रयोग करने से भूख खुल कर लगने लगती है।
गैस ट्रबल - इसे वायु प्रकोप भी कहते हैं। अपच और क़ब्ज़ की शिकायत होने पर गैस बनती है। वक्त बेवक्त भोजन करने, गरिष्ठ और दूषित पदार्थों का सेवन करने से अपच तथा कब्ज़ होती है जिससे वायु का प्रकोप होता है। इन कारणों का त्याग कर निम्नलिखित उपाय करना चाहिए-
भोजन के अन्त में पानी पीना बन्द कर दें, खूब चबा-चबा कर भोजन करें और भोजन के बाद गैस हर वटी की २-२ गोली सुबह-शाम सेवन करें।
अम्ल पित्त - आजकल तेज़ मिर्च मसालेदार, तले हुए और चाट-चटनी युक्त खानपान, मांसाहार, शराब, तम्बाकू तथा अन्य मादक द्रव्यों के सेवन का प्रचलन बहुत बढ़ गया है और इसी वजह से अम्लपित्त (हायपरएसिडिटी) के रोगी बहुत बढ़ते जा रहे हैं। उचित खान-पान का पालन करते हुए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए-
सूतशेखर रस, कामदुधा रस, प्रवालपिष्टी और शंखभस्म- चारों १०-१० ग्राम लेकर मिला लें और बराबर-बराबर ४० पुड़िया बना लें। सुबह शाम १-१ पुड़िया दवा शहद में मिला कर लाभ न होने तक सेवन करें।
स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण या कब्ज़ीना चूर्ण १ चम्मच मात्रा में फांक कर ऊपर से एक कप गर्म पानी पी लेना चाहिए। यह प्रयोग सोते समय करें। सुबह दस्त साफ़ होगा और क़ब्ज़ मिट जाएगी।
बवासीर - क़ब्ज़ यदि लम्बे समय तक बनी रहे और मल विसर्जन के लिए ज़ोर लगाना पड़े तो बवासीर रोग होने की संभावना उत्पन्न होती है। शौच के समय ज़ोर नहीं लगाना चाहिए । बवासीर के रोगी को सुबह शाम, शौच से निवृत्त होने के बाद स्वमूत्र से गुदा धोना चाहिए। यह उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। परहेज़ रखते हुए निम्नलिखित दवाइयों का सेवन लाभ न होने तक करना चाहिए-
अर्श कुठार रस १ गोली तथा अशोन्नी वटी १ गोली सुबह शाम पानी के साथ लें। भोजन के आधा घण्टे बाद अभयारिष्ट २-२ चम्मच पानी के साथ लें । क़ब्ज़ न होने दें।
खूनी बवासीर - बवासीर रोग में यदि मल के साथ खून भी गिरता है तो इसे खूनी बवासीर या रक्तार्श कहते हैं। खून गिरना बन्द करने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करें-
नागकेशर और मिश्री १-१ चम्मच थोड़े से मक्खन में मिला कर, सुबह शाम खाएं। लाभ होने पर बन्द कर दें।
गर्भ निरोध - गर्भ की स्थापना न हो, इसके लिए मासिक धर्म शुरू होने से १० दिन पहले से ‘रजः प्रवर्तिनी वटी' १ गोली सोते समय लेना शुरू करें और मासिक धर्म शुरू होने पर बन्द कर दें। इस प्रयोग से मासिक धर्म साफ़ होता है और गर्भ की स्थापना नहीं हो पाती । इस वटी का प्रयोग गर्भवती स्त्री को नहीं करना चाहिए।
कष्टार्तव - मासिक धर्म के दिनों में बड़े कष्ट के साथ रक्तस्राव होने को ‘कष्टार्तव' कहते हैं। इस कष्ट को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें-
कार्पासारिष्ट २-२ चम्मच आधा कप पानी में मिला कर, भोजन के बाद या कुछ खाने के बाद सुबह शाम ३ सप्ताह तक सेवन करें। लाभ होने पर प्रयोग बन्द कर दें।
मधुमेह - मधुमेह के रोगियों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। अपना खानपान उचित न रखने, परिश्रम न करने और मानसिक चिन्ता व तनाव से लम्बे समय तक प्रभावित रहने से यह रोग होता है। इसकी प्रारम्भिक अवस्था में निम्नलिखित उपाय करें-
वसन्त कुसुमाकर रस १ गोली, प्रमेहगज केसरी १ गोली, एक माह तक, सुबह शाम दूध के साथ लें। एक माह बाद सिर्फ प्रमेह गज केसरी दो माह तक सेवन करते रहें। भोजन के बाद मधुमेह दमन चूर्ण १ चम्मच, आधा चम्मच पिसी हल्दी मिला कर जल के साथ फांक कर लें। इस प्रयोग से मधुमेह के कारण आई कमज़ोरी भी दूर होती है। जो व्यक्ति इनसुलिन लेते हों, वे भी चिकित्सक से सलाह और अनुमति लेकर, इनसुलिन लेते हुए इन दवाओं का सेवन कर सकते हैं। चिकित्सक से सलाह लेकर या उसके निरीक्षण में रह कर इनसुलिन की मात्रा कम करते जाएं तो धीरे-धीरे इनसुलिन से पीछा छूट सकता है। मधुमेह के रोगी को निरोगधाम के जुलाई ९६ व अक्टूबर ९६ अंक में प्रकाशित लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।
पेशाब में जलन - ज्यादा देर तेज़ धूप में रहने, तेज़ गर्मी के वातावरण में देर तक काम करने या बने रहने, प्रकृति के पदार्थों का ज्यादा मात्रा में ज्यादा समय तक सेवन करने, गलत खानपान के कारण तथा सोज़ाक रोग होने पर पेशाब में तीव्र जलन होती है, रुक रुक कर तेज़ जलन के साथ बूंद-बूंद कर पेशाब होता है। जलन शान्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें-
सम भाग दूध पानी मिला लें, इसमें शक्कर डाल कर फेंट लें। सुबह चाय न पीकर यह लस्सी पिएं। इस लस्सी के साथ १-१ गोली चन्दनादि वटी और चन्दप्रभा वटी नं. १ (विशेष) को ले लें। यही गोलियां शाम को पानी या लस्सी के साथ पुनः ले लें। जलन बन्द होने पर दवा बन्द कर दें। लाल मिर्च, गरम चाय, मांसाहार और उष्ण पदार्थों का सेवन बन्द रख कर यह उपाय करें।
मोटापा - शरीर में अतिरिक्त चर्बी इकट्ठी होने से शरीर का वज़न और मोटापा बढ़ता है। इसे दूर करने के लिए आहार में रोटी की मात्रा कम और शाक दाल और कच्चे सलाद व सूप के मात्रा ज्यादा सेवन करना चाहिए। चर्बी बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन और आलसी दिनचर्या छोड़ देना चाहिए। भोजन के अन्त में पानी नहीं पीना चाहिए। निम्नलिखित उपाय भी करना चाहिए-
मेदोहर गुग्गल और त्रिफला गुगल की २-२ गोली सुबह शाम पानी के साथ लें। भोजन के बाद आरोग्यवर्धिनी २ गोलीआधा कप पानी के साथ सुबह शाम लें। इस प्रयोग से मोटापा तो दूर होता है पर कमज़ोरी नहीं आने पाती।
मसूरिका - माता (चेचक) निकलने को 'मसूरिका' कहते हैं। बच्चे या बड़ी आयु वाले को चेचक निकलने पर बड़ा कष्ट होता है।निम्नलिखित उपाय करने पर रोगी को आराम मिलता है-
परिपाठादि काढ़ा २-२ चम्मच आधा कप पानी में डाल कर दिन में तीन बार पिलाना चाहिए। यह चेचक के रोगी को राहत देने वाला श्रेष्ठ आयुर्वेदिक योग है।
ज्वर - यूं तो ज्वर कहने को मामूली व्याधि होती है पर शरीर को तोड़ कर रख देती है। बुखार से रोगी को बहुत कमज़ोरी हो जाती है। बुखार दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें-
महाज्वरांकुश रस या महासुदर्शन घन वटी की २-२ गोली, उबाल कर ठण्डे किये हुए पानी के साथ, सुबह शाम लें। महा सुदर्शन काढ़ा २-२ चम्मच सुबह शाम पानी के साथ लें। जब तक ज्वर टूट न जाए तब तक अन्न का सेवन न कर दूध, चाय, फलों के रस या फलों का सेवन करें।