दूर्वादिघृत

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शरीर में किसी भी कारण से उष्णता बढ़ने पर पसीना निकलता है या रक्त स्राव होता है। यह उष्णता पित्त कुपित रहने से भी बढ़ सकती है जिसका कारण पित्त कुपित करने वाले आहार का अति सेवन करना होता है या बाहरी उष्णता का अति संयोग और प्रभाव होना होता है। जैसे तेज़ आंच से दूध उफन कर बर्तन से बाहर आ जाता है वैसे ही पित्त के सतत और अति प्रभाव से रक्त पर पित्त का प्रभाव हो जाता है

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शरीर में किसी भी कारण से उष्णता बढ़ने पर पसीना निकलता है या रक्त स्राव होता है। यह उष्णता पित्त कुपित रहने से भी बढ़ सकती है जिसका कारण पित्त कुपित करने वाले आहार का अति सेवन करना होता है या बाहरी उष्णता का अति संयोग और प्रभाव होना होता है। जैसे तेज़ आंच से दूध उफन कर बर्तन से बाहर आ जाता है वैसे ही पित्त के सतत और अति प्रभाव से रक्त पर पित्त का प्रभाव हो जाता है जिससे रक्त पित्त की स्थिति बन जाती है और नाक, गुदा या योनि मार्ग से रक्त स्राव होने लगता है। स्त्रियों को रक्त प्रदर रोग होने का एक कारण, यह रक्तपित्त की स्थिति निर्मित होना, होता है। इस दोष को दूर करने वाले एक अति शीतल योग ‘दूर्वादिघृत’ का परिचय प्रस्तुत है।

घटक द्रव्य - हरी दूब की जड़, नील कमल, कमल की केशर, मजीठ, एलुआ या नेत्रबाला, मूर्वा, लोध्र, नागरमोथा, रक्त चन्दन, पद्मकाष्ठा, मुनक्का, मुलहठी, हरड़, गम्भारी की छाल और सफेद चन्दन । बकरीया गाय का घी, बकरी का दूध, चावल का धोवन।

निर्माण विधि - सब दवाएं 15-15 ग्राम लेकर पानी के साथ खूब अच्छी तरह पीस कर महीन लुग्दी (कल्क) बना लें । बकरी या गाय का घी एक किलो, बकरी का दूध व चावल का धोवन 4-4 लिटर मिला कर यह लुग्दी भी इसी में मिला दें और मन्दी आंच पर पका कर यथा विधि घृत सिद्ध करें यानी इतनी देर तक उबालें कि दूध व चावल का धोवन जल जाए सिर्फ घृत (घी) बचे। यह दूर्वादिघृत है।

मात्रा और सेवन विधि - एक या दो चम्मच घृत सुबह, दोपहर व शाम को चाटें । जहां से रक्त स्राव हो रहा हो, वहां इस घृत का अंजन (लगाना), नस्य (सूंघना) और पिचकारी देना या मालिश करना चाहिए इस प्रकार यह खाने और लगाने- दोनों ढंग से सेवन किया जा सकता है।

लाभ - यह घृत उर्वरक पित्त, अधो रक्त पित्त और खूनी बवासीर में गिरने वाले रक्त को शीघ्र बन्द करता है । स्त्रियों को रक्त प्रदर और अत्यार्तव में अधिक रक्त स्राव होता है। इस घृत को खाने और इसका फाहा रात को सोते समय योनि में रखने से लाभ होता है। इसी तरह नाक, कान या गुदा से रक्त स्राव होता हो, तो यह घृत लगाना चाहिए । नाक कान में 2-2 बूंद टपकाएं। इस घृत को नियमित रूप से सेवन करने से शरीर के अन्दर के कई दोष नष्ट हो जाते हैं।

पण्डित
  • जो प्राप्त से सन्तुष्ट होकर अप्राप्त की इच्छा नहीं करता, जिस हाल में हो उसी में प्रसन्न रहता है और सब कुछ ईश्वर की इच्छा मान कर राज़ी रहता है वह पण्डित है।
  • जो बात के मर्म को तुरन्त समझ लेता है, सुनने योग्य बात को मनोयोग से सुनता है, खूब सोच विचार कर काम हाथ में लेता है, काम पूरा किये बिना नहीं छोड़ता और बिना पूछे राय नहीं देता वह पण्डित है।
  • जो नष्ट हुई चीज़ की चिन्ता नहीं करता, गुज़री हुई बात का शोक नहीं करता, अचानक विपत्ति पड़ने पर धैर्य नहीं खोता और पराई वस्तु का लालच नहीं करता वह पण्डित है।
  • जो सदा शुभ कर्म करता है, परिश्रम करके धैर्य पूर्वक धन कमाता है, आदर मिलने पर अभिमानी और अनादर मिलने पर अप्रसन्न नहीं होता, अपनी विद्या का अहंकार नहीं करता और गहन गम्भीर स्वभाव रखता है वह पण्डित है।
  • जो अपने द्वारा किये गये उपकार और दूसरों के द्वारा किये गये अपकार याद नहीं रखता, जो अपनी बुराई और दूसरों की भलाई भूलता नहीं, जो हर स्थिति में विवेक नहीं खोता और जिसके साथ रहने वाले का भला होता है, वह पण्डित है।