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अब एक अत्युत्तम और गुणकारी योग- ‘नवरत्न कल्पामृत’ का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं। नवरत्नों एवं अन्य गुणकारी घटक द्रव्यों से निर्मित होने वाला यह योग ‘नवरत्न कल्पामृत’ एक उत्तम और अमृत के समान दिव्य रसायन है। आज के जमाने में अथक परिश्रम और भारी दौड़ धूप से थके हारे और दैनिक जीवन की ज़रूरतों को पूरी करने की चिन्ता की चिता से झुलसते हुए स्त्री-पुरुषों के शरीर स्वस्थ नहीं रह पाते और किसी न किसी व्याधि से ग्रस्त बने रहते हैं।
अब एक अत्युत्तम और गुणकारी योग- ‘नवरत्न कल्पामृत’ का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं। नवरत्नों एवं अन्य गुणकारी घटक द्रव्यों से निर्मित होने वाला यह योग ‘नवरत्न कल्पामृत’ एक उत्तम और अमृत के समान दिव्य रसायन है। आज के जमाने में अथक परिश्रम और भारी दौड़ धूप से थके हारे और दैनिक जीवन की ज़रूरतों को पूरी करने की चिन्ता की चिता से झुलसते हुए स्त्री-पुरुषों के शरीर स्वस्थ नहीं रह पाते और किसी न किसी व्याधि से ग्रस्त बने रहते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर को व्याधियों से मुक्त करने की शक्ति तथा क्षमता यह योग प्रदान करता है। निराशा को दूर कर आशा का संचार करने वाला यह योग किसी भी आयु के स्त्री - पुरुष के लिए सेवन योग्य है।
घटक द्रव्य - माणिक्य पिष्टी, नीलम पिष्टी, पन्ना पिष्टी, पुखराज पिष्टी, वैडूर्य पिष्टी, गोमेढ मणि पिष्टी और मुक्ता पिष्टी - सब 10 -10 ग्राम रौप्य भस्म, राजावर्त पिष्टी और प्रवाल पिष्टी- तीनों 20-20 ग्राम स्वर्ण भस्म, लोह भस्म, जसढ़ भस्म और अभ्रक भस्म - सब 6-6 ग्राम । शुद्ध गूगल, शुद्ध शिलाजीत और गिलोयघन - 11 - 11 ग्राम । गोघृत 60 ग्रा.।
निर्माण विधि - पहले सब पिष्टियों और भस्मों को मिला कर खरल में डाल कर अच्छी तरह घोटें फिर गूगल और गिलोय घन को डाल कर, थोड़ा थोड़ा घी डालते हुए कूटते जाएं और एक जान कर लें । शिलाजीत को थोड़े पानी में घोल कर इस मिश्रण में डाल कर घुटाई करें। जब द्रव्य एक जान हो जाएं तब 2-2 रत्ती की गोलियां बना लें। इन्हें अच्छी तरह सुखा कर शीशी में भर लें।
मात्रा और सेवन विधि - सुबह शाम 2-2 गोली दूध के साथ एक वर्ष तक सेवन करना चाहिए । इस कल्प की सेवन-अवधि एक वर्ष की है।
उपयोग - अनेक उत्तम गुणकारी एवं मूल्यवान घटक द्रव्यों से बना यह योग अनेक प्रकार के लाभ करता है। रत्नों की पिष्टियों, स्वर्ण आदि भस्म और शिलाजीत के मिश्रण ने इस योग को रसायन बना दिया है। जो औषधि व्याधि और वृद्धावस्था को दूर रखे उसे रसायन कहते हैं। इन घटक द्रव्यों ने इस योग को शरीर की सातों धातुओं को शुद्ध और पुष्ट करने तथा वात एवं पित्त का शमन करने वाला बना दिया है जो सेवन करने पर शीघ्र ही प्रभाव दिखाने लगता है। इसे एक बेस्ट आयुर्वेदिक जनरल टॉनिक कहा जा सकता है जो सभी के लिए सेवन योग्य है।
यह योग वात और पित्त का शमन करने के अलावा विषनाशक, रक्तवृद्धि करने वाला, मस्तिष्क को ताक़त, तरावट और ताज़गी देने वाला तथा हृदय को बल देने वाला है। यह शरीर की सातों धातुओं के विकार दूर कर उनकी पुष्टि और वृद्धि कर ओज बढ़ाता है जिससे चेहरा भरा हुआ और तेजस्वी रहता है। जो व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) बवासीर, क्षय, प्रमेह, मधुमेह, जीर्णज्वर, वास, खांसी, मूत्राघात, वात रोग, आमवात, गैस, अन्तर्विद्रधि, मदात्यय, हृद्दौर्बल्य और विषाक्त प्रभाव के कारण कमजोर हो गये है, उनको पुनः स्वस्थ और सबल करने के लिए, दूषित तत्वों को नष्ट कर नये सत्वयुक्त कणों की पूर्ति करने में इस योग को, मुख्य औषधियों के साथ-साथ सेवन कराने पर चमत्कारिक रूप से लाभ होता है और व्याधि से शीघ्र छुटकारा मिलता है।
शरीर के अंग-प्रत्यंग और नाड़ियों में - मल, आम, मेद, विष; कीटाणु, कफ या विजातीय ढून्य इकठे हो गये हों तो उन्हें नष्ट कर शरीर से बाहर कर देने में समर्थ ‘नवरत्न कल्पामृत’ शरीर की चयापचय प्रक्रिया को नियमित करता है, वात नाड़ियों, हृदय प्रदेश, वृक्क और मस्तिष्क को सबल बनाता है। इस तरह यह योग विभिन्न रोगों को दूर करने के गुण रखता है।
जो शारीरिक कमजोरी और मानसिक खिन्नता के कारण आलस्य व शिथिलता का अनुभव करते हों, जिन्हें अच्छी नींद न आती हो, किसी काम में मन न लगता हो, ज़रा से परिश्रम से सांस फूल जाती हो, चक्कर आते हों, ज़रा सा दिमागी काम करने पर सिर पकड़ लेते हों यानी सिर भारी हो जाता हो, उन्हें इस योग का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। छात्र-छात्राओं और सभी दिमागी काम करने वालों के लिए यह योग आयुर्वेद का वरदान ही है।
अनियमित और अनुचित आहार-विहार के कारण पाचन क्रिया बिगड़ती है और आम विष पैदा होने लगता है। आजकल यह शिकायत होना आम बात हो गई है। यह आम विष पूरे शरीर को दूषित करता है, जोड़ों में दर्द पैदा करता है और धरि-धरि पूरे शरीर को कमज़ोर कर देता है। ऐसी स्थिति को ठीक करने और आम विष के प्रभाव को दूर करने के लिए ‘नवरत्न कल्पामृत’ की 2-3 गोली शृंगराजासव 2-2 चम्मच के साथ सेवन करना चाहिए । रत्नों और भस्मों के साथ गिलोयघन मिलाने से यह योग तीनों दोष (वात पित्त कफ) को समान अवस्था में लाने की क्षमता रखता है गिलोयघन त्रिदोषहर होने के अलावा जीर्णज्वर क्षय का ज्वर, वीर्य स्राव, नशे के दुष्परिणाम, पित्तज दाह, अनिद्रा, दिमागी कमज़ोरी दूर करने की क्षमता भी रखता है । इस प्रकार की शिकायतों को दूर करने के लिए 2 चम्मच च्यवनप्राश अवलेह के साथ इस योग का सेवन करने से विशेष लाभ होता है गूगल आम दोष को नष्ट करता है और वातनाड़ियों को सबल बनाता है। इस योग में गूगल भी है अतः यह योग जीर्ण वात रोग, आमवात, सन्धिवात आदि रोगों को नष्ट करने में सक्षम सिद्ध होता है।
संक्षेप में इतना कहना शेष है कि धैर्यपूर्वक और नियमित इस योग का एक वर्ष तक प्रयोग करें। यह ऐसा योग है जो किसी भी ॠतु में , किसी भी आयु में, विवाहित या अविवाहित, स्त्री या पुरुष, किशोर या बूढ़े सभी सेवन कर लाभ उठा सकते है। आप भी लाभ उठाएं और दूसरों को भी प्रेरित करें ताकि ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’ वाला उद्देश्य पूरा हो सके। हमारी तो कामना ही यह रहती है कि ‘सर्वेभवन्तु सुखिनः’ यानी सभी सुखी हों। ऊंझा फार्मेसी वाले भी इसे ‘नवरत्न रस’ के नाम से बनाते हैं।