नवजीवन रस

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उचित ढंग से और नियम के अनुसार आहार-विहार न करने, दैनिक जीवन की व्यस्तता और परेशानियों के कारण होने वाले मानसिक तनाव तथा अन्य कारणों के प्रभाव से अधिकांश व्यक्तियों के लिए शरीर से स्वस्थ, चुस्त-दुरुस्त और बलिष्ठ रहना सम्भव नहीं हो पाता जिससे वे कमज़ोर और व्याधियों से ग्रस्त शरीर वाले बने रहने के लिए मजबूर रहते हैं। ऐसी परिस्थितियों से ग्रस्त स्त्री-पुरुषों के लिए शरीर में नई उर्जा और नया जीवन प्रदान करने वाले एक श्रेष्ठ योग ‘नवजीवन रस’ का परिचय प्रस्तुत है।

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उचित ढंग से और नियम के अनुसार आहार-विहार न करने, दैनिक जीवन की व्यस्तता और परेशानियों के कारण होने वाले मानसिक तनाव तथा अन्य कारणों के प्रभाव से अधिकांश व्यक्तियों के लिए शरीर से स्वस्थ, चुस्त-दुरुस्त और बलिष्ठ रहना सम्भव नहीं हो पाता जिससे वे कमज़ोर और व्याधियों से ग्रस्त शरीर वाले बने रहने के लिए मजबूर रहते हैं। ऐसी परिस्थितियों से ग्रस्त स्त्री-पुरुषों के लिए शरीर में नई उर्जा और नया जीवन प्रदान करने वाले एक श्रेष्ठ योग ‘नवजीवन रस’ का परिचय प्रस्तुत है।

घटक द्रव्य - रस सिन्दूर, अभ्रक भस्म, लोह भस्म, शुद्ध कुचिला और चित्रक मूल -सब 20-20 ग्राम और सोंठ, पीपल व काली मिर्च - तीनों 15 -15 ग्राम।

निर्माण विधि - पहले रस सिन्दूर को खरल में घोंटें, फिर इसमें दोनों भस्में डाल कर खरल करें फिर शेष द्रव्यों को महीन पीस कर खरल में डाल कर घुटाई कर एक जान कर लें। इस को अदरक और नागर बेल के पत्तों के रस में मिला कर गाढ़ा रख कर 2-3 घण्टे घुटाई करके 1-1 रत्ती की (एक ग्राम में आठ रत्ती होती हैं) गोलियां बना कर सुखा लें । नागर बेल के पत्तों के अभाव में पान ले सकते हैं।

मात्रा और सेवन विधि - दो-दो गोली सुबह शाम अदरक के रस पान के रस व शहद के साथ या गाय के दूध के साथ या चविकासव या गर्म जल के साथ सेवन करें।

उपयोग - इस रस का सेवन करने से वास्तव में नवजीवन प्राप्त होता है। इसके सेवन से पाचक रस पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होता है जिससे पाचन शक्ति तीव्र होती है और खाया-पिया पूरी तरह से हजम होने से शरीर पुष्ट, सुडौल और ताकतवर होता है। स्वस्थ अवस्था में भी इसका सेवन कर शरीर में बल वीर्य की वृद्धि की जा सकती है, धातुओं को पुष्ट किया जा सकता है और यौनांग प्रदेश को सक्षम और सबल बनाये रखा जा सकता है। यहां इसके कुछ अत्यन्त गुणकारी प्रयोग दिये जा रहे हैं।

मन्दाग्नि - पाचन शक्ति कमज़ोर होने पर खाया-पिया ठीक से पचता नहीं इसलिए अंग नहीं लगता। पौष्टिक आहार लेने वाला यह देख कर हैरान रहता है कि इतना पौष्टिक और तरावट वाला आहार लेने पर भी शरीर की ऐसी खस्ता हालत बनी हुई है, आखिर क्यूं? इसका जवाब है कि सिर्फ पौष्टिक पदार्थ खाने से ही बात नहीं बनती, पदार्थ हजम भी होना चाहिए। जिनका हाजमा अच्छा होता है वे कांदा-रोटी खा कर भी मस्त रहते हैं। जिनका हाजमा अच्छा नहीं होता यानी जिनकी जठराग्नि मन्द (मन्दाक्ति) हो जाती है वे छप्पन प्रकार के व्यजंन खाएं तो भी उनके शरीर को कुछ नहीं मिल पाता। यदि मन्दाग्नि जल्दी दूर न की जाए तो अजीर्ण होता है, अजीर्ण से उदावर्त रोग (पेट में गैस बढ़ना) होता है फिर अफारा, फिर क़ब्ज़, फिर अतिसार, फिर उदरशूल, व्याकुलता, कमजोरी, दुबलापन आदि तमाम स्वास्थ्य के शत्रु रोग पैदा हो जाते हैं। शरीर की हालत खस्ता हो जाती है। ऐसे रोगी को नया जीवन प्रदान करता है यह नवजीवन रस। ऐसी स्थिति वाले रोगी को भोजन के एक घण्टे बाद चविकासव के साथ नवजीवन रस की 11 गोली (सुबह शाम) लेना चाहिए । थोड़े ही दिनों में इसका चमत्कारी लाभ देख कर आप चकित रह जाएंगे।

वात प्रकोप - अपच, कब्ज़ और अजीर्ण से वात कुपित होता है। कुपित वात ऊपर की तरफ दबाव डालता है। यदि यह दबाव फेफड़ों पर पड़े तो श्वास कष्ट होता है और ऐसा मालूम देता है जैसे दमे का दौरा पड़ने वाला है। यदि यह दबाव हृदय पर पड़े तो हृदय में पीड़ा होती है और लगता है कि हार्ट ट्रबल है। यदि यह दबाव सिर तक जा पहुंचे तो सिर दर्द रहने लगता है । आयुर्वेद ने कहा भी है - ‘सर्वस्वेतेषु शूलेषु प्रायशः पवनप्रभु’। इन सबका वास्तविक कारण गैस ट्रबल यानी वात का प्रकोप होना होता है।

शरीर में सभी प्रकार के ऐसे दर्द, जो निजकारणों से होते हैं (आगन्तुक कारणों से नहीं) उनका मुख्य कारण वात का कुपित होना ही होता है। ऐसी स्थिति में नवजीवन रस की 1-1 गोली चविकासव के साथ लेना चाहिए। वात जन्य रोगों को नष्ट करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है।

बिस्तर में पेशाब - कुछ बच्चे प्रायः सोते हुए बिस्तर में पेशाब कर देते हैं। उनकी यह आदत काफ़ी उम्र हो जाने पर भी बनी रहती है। ऐसे बच्चों को सोने से पहले पेशाब करा लेना चाहिए और एक-एक गोली (एक -एक रत्ती की मात्रा) सुबह व शाम को दूध के साथ सेवन कराना चाहिए। इस प्रयोग से बच्चे की शिकायत कुछ दिनों में दूर हो जाती है और बच्चे का स्वास्थ्य भी अच्छा हो जाता है। लाभ न होने तक सेवन कराते रहें।

हृद्दौर्बल्य - कमज़ोर व्यक्ति का दिल भी कमजोर हो जाता है. दिल की धड़कन मन्द हो जाती है, नाड़ी का स्पन्दन मन्द, अल्पबल वाला और कभी तेज़ कभी मन्द हो जाता है, हाथ पैर की अंगुलियां और कान की पाली (लौ) शीतल रहती है, थोड़ा सा परिश्रम करने पर ही सांस फूल जाती है, पसीना छूटने लगता है। ऐसी स्थिति वाले रोगी को नवजीवन रस की 1-1 गोली सुबह शाम दूध के साथ लेने से नया जीवन प्राप्त होता है।

फुफ्फुस शोथ - फुफ्फुसों में शोथ होने से श्वास लेने में कष्ट, खांसी, घबराहट तथा हलका ज्वर रहना आदि व्याधियां हो जाती हैं। इन्हें दूर करने के लिए अदरक का रस, आधी रत्ती कपूर और पान के साथ 1-1 गोली सुबह शाम सेवन करना चाहिए।

यौन दौर्बल्य - हस्त मैथुन के कारण उत्पन्न हुई नपुंसकता, वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष आदि यौन विकारों को नष्ट करने में नवजीवन रस का जबाब नहीं है। एक ग्राम कस्तूरी के 60 भाग करके पुड़िया बना लें। नवजीवन रस की 1 गोली कस्तूरी की एक पुड़िया पान में रख कर, सुबह शाम, सेवन करने से सब यौन विकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रयोग कस्तूरी के कारण महंगा तो पड़ता है पर काम भी ऐसा करता है कि तबीअत खुश हो जाती है। जो धन सम्पन्न हों वे इस प्रयोग से लाभ उठाएं। प्रवाल भस्म 1 -1 रत्ती मिला कर मलाई या मख्खन के साथ इस रस का सेवन कर लाभ उठा सकते हैं। पूरे शीतकाल तक सेवन करें। ग्रीष्म ॠतु में मख्खन मिश्री के साथ सेवन करें और ऊपर से मीठा दूध पिएं।

सूचना - नवजीवन रस वात और कफ की प्रकृति वालों को ही सेवन करना चाहिए। यह योग उनके लिए दीपक, पाचक, कृमिनाशक, शूलनाशक, हृदय के लिए बलप्रद, आध्मान हर, रक्तशोधक, पौष्टिक, वातशामक, वातनाड़ी पोषक और कामोत्तेजक औषधि का काम करता है। अम्ल पित्त, पित्त प्रधान प्रकृति और वृक्क विकार वालों को इस नवजीवन रस का सेवन नहीं करना चाहिए।

शान्ति बाहर से नहीं अन्दर से उपलब्ध होती है और इसके लिए हमें कुछ प्रयास करने होंगे। अगर जैसे हमसे ग़लती हो जाए तो अपनी ग़लती मान लेना चाहिए। इसमें कोई शर्म की बात नहीं। क्षमा मांग लेना कमज़ोरी की बात नहीं और न क्षमा कर देना कायरता की बात ही होती है। सहनशील होना मजबूरी की बात नहीं होती और न धैर्यवान होना आलस्य की बात होती है। बल्कि ज़रा गहरे में सोचें तो इन सबसे शान्ति उपलब्ध होती है, आत्मोन्नति होती है और व्यक्तित्व का विकास होता है। अपनी ग़लती मान लेने से अपना ही सुधार होता है, क्षमा मांगने से अहंकार नष्ट होता है, सहनशीलता से मनोबल में वृद्धि ( होती है और धैर्य रखने से मनोरथ की प्राप्ति होती है।