गैस सम्बन्धी समस्या

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गैस सम्बन्धी समस्या

वायु होने यानी वात प्रकोप होने के कुछ कारण होते हैं जैसे अनियमित ढंग से आहार लेना, भारी तले हुए मिर्च मसाले दार तथा खटाई युक्त पदार्थो का अति सेवन करना, स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहना, उचित दिनचर्या का पालन न करना, वक्त -बेवक्त भोजन करना, ज्यादा देर तक भूखे रह कर पेट खाली रखना, कब्ज व् मंदाग्नि होना, पाचन प्रक्रिया का ठीक से काम न करना, अपच व अजीर्ण होना, मल का पूरी तरह से न पकना आदि कारणों से गैस बनती हैं जो अगर डकार या अधोवायु के रूप में बाहर न निकले तो बहुत कष्ट होता हैं।

वातजन्य रोग- वात प्रकोप के कारण कई रोग पैदा होते हैं जिनमे सबसे प्रमुख रोग हैं 

शरीर के किसी भी भाग में दर्द होना। इसके अतिरिक्त उदावर्त, आध्मान, आमवात, संधि वात, पेट फूलना, ग्रध्रसी, कम्पवात, सिर दर्द, माइग्रेन, आधा सीसी, उदरशूल आदि कई रोग पैदा होते हैं। उदर में वात प्रकोप होने पर निम्न लिखित चिकित्सा करना चाहिए।

चिकित्सा- (1) लवण भास्कर चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण और सितोपलादि चूर्ण आदि द्रव्यों को मिला कर बनाई गई गैसहर वटी सुबह शाम भोजन के बाद २-२ गोली पानी के साथ लेने से लाभ होता हैं। (2) इमली का क्षार, पांचों नमक, शंख भस्म, भुनी हींग, सोंठ, काली मिर्च, पीपल- सब ४-४ ग्राम, कज्जली २ ग्राम, शुद्ध बच्छनाभ १ ग्राम-सबको खूब बारीक पीस कर ठीक से मिला कर एक जान कर ले। इसे नींबू के २० ml रस में डालकर अच्छी तरह घुटाई करके एक जान कर ले और १-१ रत्ती कि गोलिया बना कर छाया में सूखा ले। दिन में तीन बार २-२ गोली पानी के साथ ले। यह पाचन करने वाला आयुर्वेद का उत्तम योग हैं और 'शंख वटी' के नाम से बना बनाया बाजार में मिलता हैं। (3) हिंग्वष्टक चूर्ण भी बाजार में मिलता हैं। एक चम्मच चूर्ण घी में मिलाकर भोजन शुरू करते समय या भोजन के बीच में ४-५ कौर में मिला कर खाने से पाचन क्रिया अच्छी तरह काम करती हैं।

परहेज- पाचन क्रिया ठीक काम करे इसके लिए देर से पचने वाले भारी पदार्थ, तले हुए और तेज मिर्च मसालेदार पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। भोजन ठीक वक्त पर ३२ बार कौर चबा कर किया करे और भोजन के अंत में पानी न पिया करे।

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गैस सम्बन्धी समस्या

वायु होने यानी वात प्रकोप होने के कुछ कारण होते हैं जैसे अनियमित ढंग से आहार लेना, भारी तले हुए मिर्च मसाले दार तथा खटाई युक्त पदार्थो का अति सेवन करना, स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहना, उचित दिनचर्या का पालन न करना, वक्त -बेवक्त भोजन करना, ज्यादा देर तक भूखे रह कर पेट खाली रखना, कब्ज व् मंदाग्नि होना, पाचन प्रक्रिया का ठीक से काम न करना, अपच व अजीर्ण होना, मल का पूरी तरह से न पकना आदि कारणों से गैस बनती हैं जो अगर डकार या अधोवायु के रूप में बाहर न निकले तो बहुत कष्ट होता हैं।

वातजन्य रोग- वात प्रकोप के कारण कई रोग पैदा होते हैं जिनमे सबसे प्रमुख रोग हैं 

शरीर के किसी भी भाग में दर्द होना। इसके अतिरिक्त उदावर्त, आध्मान, आमवात, संधि वात, पेट फूलना, ग्रध्रसी, कम्पवात, सिर दर्द, माइग्रेन, आधा सीसी, उदरशूल आदि कई रोग पैदा होते हैं। उदर में वात प्रकोप होने पर निम्न लिखित चिकित्सा करना चाहिए।

चिकित्सा- (1) लवण भास्कर चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण और सितोपलादि चूर्ण आदि द्रव्यों को मिला कर बनाई गई गैसहर वटी सुबह शाम भोजन के बाद २-२ गोली पानी के साथ लेने से लाभ होता हैं। (2) इमली का क्षार, पांचों नमक, शंख भस्म, भुनी हींग, सोंठ, काली मिर्च, पीपल- सब ४-४ ग्राम, कज्जली २ ग्राम, शुद्ध बच्छनाभ १ ग्राम-सबको खूब बारीक पीस कर ठीक से मिला कर एक जान कर ले। इसे नींबू के २० ml रस में डालकर अच्छी तरह घुटाई करके एक जान कर ले और १-१ रत्ती कि गोलिया बना कर छाया में सूखा ले। दिन में तीन बार २-२ गोली पानी के साथ ले। यह पाचन करने वाला आयुर्वेद का उत्तम योग हैं और 'शंख वटी' के नाम से बना बनाया बाजार में मिलता हैं। (3) हिंग्वष्टक चूर्ण भी बाजार में मिलता हैं। एक चम्मच चूर्ण घी में मिलाकर भोजन शुरू करते समय या भोजन के बीच में ४-५ कौर में मिला कर खाने से पाचन क्रिया अच्छी तरह काम करती हैं।

परहेज- पाचन क्रिया ठीक काम करे इसके लिए देर से पचने वाले भारी पदार्थ, तले हुए और तेज मिर्च मसालेदार पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। भोजन ठीक वक्त पर ३२ बार कौर चबा कर किया करे और भोजन के अंत में पानी न पिया करे।


लवण भास्कर चूर्ण