कामचूड़ामणि रस

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यह योग ‘रस योग सागर’ नामक आयुर्वेदिक ग्रन्थ से उद्धृत कर ‘रस तन्त्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड’ के पेज 595 पर प्रस्तुत किया गया है जहां से हम इसे जनकल्याण के लिए साभार उद् धृत कर प्रस्तुत कर रहे हैं।

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यह योग ‘रस योग सागर’ नामक आयुर्वेदिक ग्रन्थ से उद्धृत कर ‘रस तन्त्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड’ के पेज 595 पर प्रस्तुत किया गया है जहां से हम इसे जनकल्याण के लिए साभार उद् धृत कर प्रस्तुत कर रहे हैं।

घटक द्रव्य - मुक्ता पिष्टी, सुवर्णमाक्षिक भस्म, सुवर्ण भस्म, भीमसेनी कर्पूर, जावित्री, जायफल, लौंग, वंग भस्म और रजत भस्म - ये 9 औषधियां 20-20 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपात, छोटी इलायची के दाने, असली नागकेशर का मिश्रित चूर्ण 90 ग्राम।

विधि - सबका चूर्ण मिला कर शतावर के रस में सात दिन तक खरल करके 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें।

मात्रा - 1 या 2 गोली सुबह शाम मीठे दूध के साथ सेवन करना चाहिए। दूध को मीठा करने के लिए शक्कर के स्थान पर पिसी मिश्री (खड़ी साखर) डालें ।

गुण एवं उपयोग - यह रसायन शीतवीर्य, पौष्टिक एवं कामोत्तेजना है और वाजीकारक नुस्खों का सरताज़ है। शीतवीर्य होने से यह पित्त प्रकृति के, गरम तासीर वाले, गांजा शराब मांसाहार तेज़ मिर्च मसाले का सेवन करने से बढ़ी हुई उष्णता से ग्रस्त लोगों के लिए भी अत्यन्त अनुकूल और लाभकारी है इसीलिए इसे सिर्फ शीतकाल में ही नहीं बल्कि अन्य ॠतुओं में भी सेवन किया जा सकता है। यह अत्यन्त लाभकारी तो है ही निरापद (करीाश्रशीी) भी है क्योंकि इसमें अफीम गांजा जैसी मादक चीज़ नहीं है। शास्त्र में नामर्दीनाशक ऐसे ऐसे नुस्खे दिये हैं कि जो बूढ़े में भी फिर से जवानी का जोश पैदा कर दें पर ऐसे अधिकांश नुस्खों में अफीम का प्रयोग बताया जाता है । ऐसे नुस्खे बिजली की करेन्ट की तरह तुरन्त अपना असर दिखाते हैं इसमें कोई सन्देह नहीं। ऐसे नुस्खे मुर्दा अंग में जान डाल कर इसे फौलाद जैसा बना देते हैं, स्तम्भन शक्ति बढ़ा देते हैं जिससे सेवन करने वाला उस वक्त तो मन चाहा मज़ा लूट लेता है पर मज़े मज़े में ऐसा व्यक्ति यह भूल जाता है कि वह शरीर की स्वाभाविक शक्ति और मर्यादा का उल्लंघन करके सिर्फ दवा के दम पर ही ऐसा कर पा रहा है जैसे कोई व्यक्ति कर्ज़ ले लेकर अपनी औकात से ज्यादा खर्चे करता हो। ऐसे व्यक्ति की कैसी दुर्दशा होगी या होती ही है, यह समझाना ज़रूरी नहीं, इतनी अक्ल तो बेवकूफ में भी होती है बाकी यह बात जुदागाना है कि वह अक्ल की बात मानता नहीं। अक्ल की बात न मानना ही बेवकूफी होती है। आपको शायद पता हो कि ‘बेवकूफ’ शब्द, जो कि दरअसल ‘बेवुकूफ’ शब्द है पर बोल-चाल में ‘बेवकूफ’ ही बोला जाता है, अरबी भाषा के ‘वुकूफ़’ शब्द में ‘बे’ जोड़ने से बना है। ‘वुकूफ’ का मतलब होता है जानकारी, ज्ञान) ‘बे’ का मतलब होता है बिना, रहित जैसे मतलब के साथ बे जोड़ने से बेमतलब शब्द बनता है, जैसे चारा (उपाय) के साथ ‘बे’ जोड़ने से ‘बेचारा’, नाम से बेनाम, कार से बेकार, शर्म से बेशर्म, अक्ल से बेअक्ल शब्द बनते हैं। जो बेअक्ल हो उसे ही ‘बेवकूफ’ यानी बेवुकूफ कहते हैं।

ऐसे नुस्खे जो अफीम जैसे नशीले द्रव्यों से युक्त होते हैं वे तत्काल तो स्वर्गीय आनन्द देने वाले सिद्ध होते हैं पर फिर सदा के लिए नरक में ढकेल देते हैं। यदि रबर को आप बार-बार और जरूरत से ज्यादा खीचेंगे तो वह ढीला पड़ ही जाएगा, टूट भी सकता है। मोम कितना नरम होता है पर उसे बार-बार ठोंका जाए तो वह भी पत्थर की तरह सख्त हो जाता है यानी विपरीत स्थिति वाला हो जाता है। फ़ौलाद कितना सख्त होता है पर बार बार तेज आंच दी जाए तो पिघल ही जाता है, बार बार चोट मारी जाए तो टूट ही जाता है फिर शरीर के अंग-प्रत्यंग तो बेचारे हाड़ मांस से बने हुए हैं तो ऐसे मादक द्रव्य युक्त नुस्खों का सेवन करने वाले शीघ्र ही कचरे में डालने के लायक जाते हैं। उनमें फिर पहले जितना यानी उतना दमखम भी बाकी नहीं रहता जितना प्राकृतिक रूप से रहना चाहिए।

वाजीकारक नुस्खों की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और उपयोगिता के विषय में उचित जानकारी देने के बाद अब वापिस मुद्दे पर लौटते हैं।

किसी भी आयु के विवाहित स्त्री-पुरुष, किसी भी ॠतु में, आवश्यकता के अनुसार अवधि तक ‘कामचूड़ामणिरस रस’ का सेवन कर सकते हैं। इस योग की उपयोगिता और गुणवत्ता का लम्बा चौड़ा बखान करने की ज़रूरत नहीं, सिर्फ इतना लिख देना काफ़ी समझते हैं कि यह योग किसी भी कारण से या बुरी आदतों के परिणाम स्वरूप पैदा होने वाली यौन दुर्बलता को दूर करके सब प्रकार के यौन-विकार दूर करने की शक्ति रखता है । अच्छे आचार-विचार का पालन करते हुए, कामुक चिन्तन करना छोड़ कर, पौष्टिक आहार सेवन करते हुए इस योग का प्रयोग करके आप अपने दाम्पत्य जीवन को सुख-सन्तोष पूर्ण बना सकते हैं इसमें सन्देह नहीं। यह योग पुरुषों के लिए ही नहीं बल्कि स्त्रियों के लिए भी पूरी तरह उपयोगी व गुणकारी है। यह पुरुषों की तरह स्त्री शरीर को भी बलवान, स्फूर्तिवान और क्षमतावान बनाता है, उनकी देह को सुडौल और चेहरे को तेजस्वी बनाता है गर्भाशय, डिम्बाशय, योनि प्रदेश आदि अंगों को सबल और स्वस्थ बनाता है, स्तनों को सुडौल रखता है और पूरे शरीर को स्वस्थ रखता है। मासिक धर्म की अनियमितता दूर करता है और जैसे पुरुषों को सही मायनों में पुरुषत्व प्रदान कर ‘मर्द’ बनाता है उसी प्रकार स्त्रियों को ‘स्त्रीत्व’ प्रदान कर ‘सम्पूर्ण स्त्री’ बनाता है।

इसको कम से कम 60 दिन तो सेवन करना ही चाहिए। इसको सेवन करते समय इमली व अमचूर की खटाई का सेवन क़तई न करें। सहवास में अति न करें यानी ‘सौ सुनार की और एक लोहार की’ वाली कहावत को खयाल में रखें। सबसे बड़ा परहेज़ तो यह है कि सहवास के समय के अलावा कभी भी आप कामुक विषय का खयाल यानी सोच विचार ही न करें। बेकार सुलगते रहने और धुआं करते रहने से फायदा भी क्या है ? इसलिए न सिर्फ कामुक विषय का चिन्तन ही न करें बल्कि कामुक वातावरण से भी दूर रहें। यदि उपरोक्त विवरणानुसार रहते हुए आप इस औषधि का सेवन करते हैं तो यह शीघ्र ही लाभदायक एवं पुष्टिवर्द्धक सिद्ध होगी।